एक महाविद्यालय में
नये विभाग के लिये
नया भवन बनवाया गया,
उसके उदघाटन के लिये
विद्यालय के एक पुराने छात्र
लेकिन नये नेता को
बुलवाया गया ।
अध्यापकों ने
कार के दरवाजे खोले
नेता जी उतरते ही बोले -
यहां तर गईं
कितनी ही पीढ़ियां,
अहा!
वही पुरानी सीढ़ियां।
वही पुराना मैदान
वही पुराने वृक्ष,
वही कार्यालय
वही पुराने कक्ष।
वही पुरानी खिड़की
वही जाली,
अहा देखिये
वही पुराना माली।
मंडरा रहे थे
यादों के धुंधलके
थोड़ा और आगे गये चल के -
वही पुरानी
चिमगादड़ों की साउण्ड,
वही घंटा
वही पुराना प्लेग्राउण्ड ।
छात्रों में
वही पुरानी बदहवासी,
अहा वही पुराना चपरासी ।
नमस्कार, नमस्कार!
अब आया हॉस्टल का द्वार -
हॉस्टल में वही कमरे
वही पुराना खानसामा,
वही धमाचौकड़ी
वही पुराना हंगामा।
नेताजी पर
पुरानी स्मृतियां छा रहीं थीं,
तभी पाया
कि एक कमरे से
कुछ ज्यादा ही
आवाजें रही थीं।
उन्होंने दरवाजा खटखटाया,
लड़के ने खोला
पर घबराया ।
क्योंकि अन्दर एक कन्या थी
वल्कल-वसन-वन्या थी।
दिल रह गया दहल के
लेकिन बोला संभल के --
आइये सर
मेरा नाम मदन है,
इनसे मिलिये
मेरी कजन है।
नेता जी लगे मुस्कराने --
वही पुराने बहाने।
1 comment:
हा हा!! वही पुराना चुटकुला!!! :)
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