Monday, November 12, 2007

सावधानी से चलें

कृपया सावधानी से स्कूटर चलायें, वर्ना......

Monday, November 5, 2007

गलतफहमी

हमारा टेलीफोन है
कितना महान!
एक नमूना देखिये श्रीमान
हमने लगाया रेलवे इंक्वायरी
और लग गया कब्रिस्तान

हुआ यों कि हमें
एक कवि सम्मेलन में जाना था
और रेलगाड़ी में अपना आरक्षण कराना था
इसलिये हमने रेलवे इंक्वायरी का
नंबर मिलाया
लेकिन हमें क्या मालूम कि उधर से
कब्रिस्तान के बाबू ने उठाया
बोल - 'फरमाइये'
हमने कहा - 'भाई साहब, हमें केवल एक बर्थ चाहिये
क्या मिल जाएगी?'
वो बोला - 'बैठे ही आपके लिये हैं
हमारी सेवा
किस दिन काम आयेगी !
हमारे होते हुये बिलकुल मत घबराइये
एक क्या, पचास सीटें खाली हैं
पूरे खानदान को ले आइये!'

-- प्रदीप चौबे

Sunday, November 4, 2007

शैल चतुर्वेदी को श्रद्धांजली - चल गई

हिंदी जगत के प्रख्यात हास्य कवि, कलाकार, लेखक श्रीमान शैल चतुर्वेदी जी का निधन विगत सोमवार को मुंबई स्थित निवास पर हो गया। श्रद्धांजली के रुप में पेश है उनकी एक प्रसिद्ध रचना चल गई

वैसे तो एक शरीफ इंसान हूँ

आप ही की तरह श्रीमान हूँ

मगर अपना आंख से

बहुत परेशान हूँ

अपने आप चलती है

लोग समझते हैं -- चलाई गई है

जान-बूझ कर मिलाई गई है।



एक बार बचपन में

शायद सन पचपन में

क्लास में

एक लड़की बैठी थी पास में

नाम था सुरेखा

उसने हमें देखा

और बांई चल गई

लड़की हाय-हाय

क्लास छोड़ बाहर निकल गई।



थोड़ी देर बाद

हमें है याद

प्रिसिपल ने बुलाया

लंबा-चौड़ा लेक्चर पिलाया

हमने कहा कि जी भूल हो गई

वो बोल - ऐसा भी होता है भूल में

शर्म नहीं आती

ऐसी गंदी हरकतें करते हो,

स्कूल में?

और इससे पहले कि

हकीकत बयान करते

कि फिर चल गई

प्रिंसिपल को खल गई।

हुआ यह परिणाम

कट गया नाम

बमुश्किल तमाम

मिला एक काम।



इंटरव्यूह में, खड़े थे क्यू में

एक लड़की था सामने अड़ी

अचानक मुड़ी

नजर उसकी हम पर पड़ी

और आंख चल गई

लड़की उछल गई

दूसरे उम्मीदवार चौंके

फिर क्या था

मार-मार जूते-चप्पल

फोड़ दिया बक्कल

सिर पर पांव रखकर भागे

लोगबाग पीछे, हम आगे

घबराहट में घुस गये एक घर में

भयंकर पीड़ा था सिर में

बुरी तरह हांफ रहे थे

मारे डर के कांप रहे थे

तभी पूछा उस गृहणी ने --

कौन ?

हम खड़े रहे मौन

वो बोली

बताते हो या किसी को बुलाऊँ ?

और उससे पहले

कि जबान हिलाऊँ

चल गई

वह मारे गुस्से के

जल गई

साक्षात दुर्गा-सी दीखी

बुरी तरह चीखी

बात की बात में जुड़ गये अड़ोसी-पड़ोसी

मौसा-मौसी

भतीजे-मामा

मच गया हंगामा

चड्डी बना दिया हमारा पजामा

बनियान बन गया कुर्ता

मार-मार बना दिया भुरता

हम चीखते रहे

और पीटने वाले

हमें पीटते रहे

भगवान जाने कब तक

निकालते रहे रोष

और जब हमें आया होश

तो देखा अस्पताल में पड़े थे

डाक्टर और नर्स घेरे खड़े थे

हमने अपनी एक आंख खोली

तो एक नर्स बोली

दर्द कहां है?

हम कहां कहां बताते

और इससे पहले कि कुछ कह पाते

चल गई

नर्स कुछ नहीं बोली

बाइ गॉड ! (चल गई)

मगर डाक्टर को खल गई

बोला --

इतने सीरियस हो

फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो

इस हाल में शर्म नहीं आती

मोहब्बत करते हुए

अस्पताल में?

उन सबके जाते ही आया बार्ड बॉय

देने लगा अपनी राय

भाग जाएं चुपचाप

नहीं जानते आप

बढ़ गई है बात

डाक्टर को गड़ गई है

केस आपका बिगड़वा देगा

न हुआ तो मरा बताकर

जिंदा ही गड़वा देगा।

तब अंधेरे में आंखें मूंदकर

खिड़की के कूदकर भाग आए

जान बची तो लाखों पाये।



एक दिन सकारे
बाप जी हमारे

बोले हमसे --

अब क्या कहें तुमसे ?

कुछ नहीं कर सकते

तो शादी कर लो

लड़की देख लो।

मैंने देख ली है

जरा हैल्थ की कच्ची है

बच्ची है, फिर भी अच्छी है

जैसी भी, आखिर लड़की है

बड़े घर की है, फिर बेटा

यहां भी तो कड़की है।

हमने कहा --

जी अभी क्या जल्दी है?

वे बोले --

गधे हो

ढाई मन के हो गये

मगर बाप के सीने पर लदे होवह घर फंस गया तो संभल जाओगे।

तब एक दिन भगवान से मिलके

धड़कता दिल ले

पहुंच गए रुड़की, देखने लड़की

शायद हमारी होने वाली सास

बैठी थी हमारे पास

बोली --

यात्रा में तकलीफ तो नहीं हुई

और आंख मुई चल गई

वे समझी कि मचल गई

बोली --

लड़की तो अंदर है

मैं लड़की की मां हूँ

लड़की को बुलाऊँ

और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊँ

आंख चल गई दुबारा

उन्होंने किसी का नाम ले पुकारा

झटके से खड़ी हो गईं

हम जैसे गए थे लौट आए

घर पहुंचे मुंह लटकाए

पिता जी बोले --

अब क्या फायदा

मुंह लटकाने से

आग लगे ऐसी जवानी में

डूब मरो चुल्लू भर पानी में

नहीं डूब सकते तो आंखें फोड़ लो

नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो

जब भी कहीं जाते हो

पिटकर ही आते हो

भगवान जाने कैसे चलाते हो?

अब आप ही बताइये

क्या करूं?

कहां जाऊं?

कहां तक गुन गांऊं अपनी इस आंख के

कमबख्त जूते खिलवाएगी

लाख-दो-लाख के।

अब आप ही संभालिये

मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिये

जवान हो या वृद्धा पूरी हो या अद्धा

केवल एक लड़की

जिसकी एक आंख चलती हो

पता लगाइये

और मिल जाये तो

हमारे आदरणीय 'काका' जी को बताइये।

Saturday, November 3, 2007

चुंबन और झापड़

गली के मोड़ पर

एक आलीशान दुकान

तीन ग्राहक विद्यमान

वृद्धा, तरूणी, जवान

सामानें के बीच उलझा हुआ दुकानदार

चल रहा लेन-देन, बात-व्यवहार

ज्योति उड़ी धुआंधार

निविड़ अंधकार

स्याही में सभी डूबने लगे।

अंधेरे में जवान को सूझै

मजाक एक प्यारा

उसने अपने हाथ का चुंबन लिया

और दुकानदार को एक झापड़ मारा।

चुंबन और झापड़ गूंज उठा

ज्यों लाभ और घाटा

लड़खड़ा उठा सन्नाटा

बुढ़िया सोचने लगी --

चरित्रवान युवती ने उचित व्यवहार किया

चुंबन का झापड़ से जवाब दिया।

तरुणी सोचती है --

हाय रे मूर्ख नादान, अजनबी अनजान

मुझे छोड़कर बुढ़िया पर मर-मिटा

बेचारा अनायास पिटा।

और दुकानदार पछताता हुआ

अपना गाल सहलाता हुआ

सोच-सोच कर रहा है गम

हाय-हाय, चुंबन उसने लिया पिट गये हम।


--- सूड़ फैजाबादी